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इन्द्र॑श्च॒ सोमं॑ पिबतं बृहस्पते॒ऽस्मिन्य॒ज्ञे म॑न्दसा॒ना वृ॑षण्वसू। आ वां॑ विश॒न्त्विन्द॑वः स्वा॒भुवो॒ऽस्मे र॒यिं सर्व॑वीरं॒ नि य॑च्छतम् ॥१०॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

indraś ca somam pibatam bṛhaspate smin yajñe mandasānā vṛṣaṇvasū | ā vāṁ viśantv indavaḥ svābhuvo sme rayiṁ sarvavīraṁ ni yacchatam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इन्द्रः॑। च॒। सोम॑म्। पि॒ब॒त॒म्। बृ॒ह॒स्प॒ते॒। अ॒स्मिन्। य॒ज्ञे। म॒न्द॒सा॒ना। वृ॒ष॒ण्व॒सू॒ इति॑ वृष॒ण्व॒सू। आ। वा॒म्। वि॒श॒न्तु॒। इन्द॑वः। सु॒ऽआ॒भुवः॑। अ॒स्मे इति॑। र॒यिम्। सर्व॑ऽवीरम्। नि। य॒च्छ॒त॒म् ॥१०॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:50» मन्त्र:10 | अष्टक:3» अध्याय:7» वर्ग:27» मन्त्र:5 | मण्डल:4» अनुवाक:5» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब राजा कैसे हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (बृहस्पते) पूर्णविद्वन् ! (च) और (इन्द्रः) अत्यन्त ऐश्वर्य्यवाला (मन्दसाना) प्रशंसित और आनन्दयुक्त (वृषण्वसू) बलिष्ठ वीर पुरुषों को निवास करानेवाले आप दोनों (अस्मिन्) इस (यज्ञे) राज्यपालननामक व्यवहार में (सोमम्) उत्तम ओषधियों के रस का (पिबतम्) पान करो और जैसे (स्वाभुवः) आप होनेवाले (इन्दवः) ऐश्वर्य्य (वाम्) आप दोनों को (आ, विशन्तु) प्राप्त हों, वैसे (अस्मे) हम लोगों के लिये (सर्ववीरम्) सब वीर हों जिससे उस (रयिम्) धन को आप दोनों (नि, यच्छतम्) उत्तम प्रकार दीजिये ॥१०॥
भावार्थभाषाः - हे राजा और राजोपदेशको ! तुम कभी मदकारक वस्तु का सेवन न करो और राज्यपालन तथा सत्योपदेश से ही प्रजाओं का पालन कर सदैव आनन्दित होओ और हम लोगों के लिये सब ऐश्वर्य्य अच्छे प्रकार देओ १०॥ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजानः कीदृशो भवेयुरित्याह ॥

अन्वय:

हे बृहस्पते ! इन्द्रश्च मन्दसाना वृषण्वसू युवामस्मिन् यज्ञे सोमं पिबतं यथा स्वाभुव इन्दवो वामा विशन्तु तथाऽस्मे सर्ववीरं रयिं युवां नियच्छतम् ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रः) परमैश्वर्य्यवान् (च) (सोमम्) सदोषधिरसम् (पिबतम्) (बृहस्पते) पूर्णविद्वन् ! (अस्मिन्) (यज्ञे) राज्यपालनाख्ये व्यवहारे (मन्दसाना) प्रशंसितावानन्दितौ (वृषण्वसू) यौ वृष्णो बलिष्ठान् वीरान् वासयतस्तौ (आ) (वाम्) युवाम् (विशन्तु) प्राप्नुवन्तु (इन्दवः) ऐश्वर्य्याणि (स्वाभुवः) ये स्वयं भवन्ति ते (अस्मे) अस्मभ्यम् (रयिम्) धनम् (सर्ववीरम्) सर्वे वीरा यस्मात्तम् (नि) नितराम् (यच्छतम्) प्रदद्यातम् ॥१०॥
भावार्थभाषाः - हे राजराजोपदेशकौ ! युवां कदाचिदपि मादकद्रव्यं मा सेवेथां राज्यपालनेन सत्योपदेशेनैव प्रजाः सम्पाल्य सदैवानन्देतमस्मभ्यं सर्वैश्वर्य्यं प्रदद्यातम् ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा व राजोपदेशकांनो ! तुम्ही कधी मादक पदार्थांचे सेवन करू नका व राज्यपालन आणि सत्योपदेशाने प्रजेचे पालन करा व सदैव आनंदात राहा. आम्हाला सर्व प्रकारचे ऐश्वर्य द्या. ॥ १० ॥